ऊँ जय पारस देवा स्वामी जय पारस देवा ।
सुर नर मुनिजन तुम चरणन की करते नित सेवा ।।१।। ऊँ जय...
पौष वदी ग्यारस काशी में आनन्द अति भारी, स्वामी आनन्द ।
अश्वसेन पिता वामा माता उर लीनों अवतारी ।।२।। ऊँ जय...
श्याम वरण नवहस्त काय पग उरग लखन सोहैं, स्वामी उरग ।
सुरकृत अति अनुपम पा भूषण सबका मन मोहैं ।।३।। ऊँ जय...
जलते देख नाग नागिन को मंत्र नवकार दिया, स्वामी मंत्र ।
हरा कमठ का मान ज्ञान का भानु प्रकाश किया ।।४।। ऊँ जय...
मात पिता तुम स्वामी मेरे, आस करुं किसकी, स्वामी आस ।
तुम बिन दाता और न कोई शरण गहूं जिसकी ।।५।। ऊँ जय...
तुम परमातम तुम अध्यातम तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम ।
स्वर्ग मोक्ष के दाता तुम हो त्रिभुवन के स्वामी ।।६।। ऊँ जय...
दीनबन्धु दुःख हरण जिनेश्वर, तुमही हो मेरे, स्वामी तुम ।
दो शिवधाम को वास दास, हम द्वार खड़े तेरे ।।७।। ऊँ जय...
विपद विकार मिटाओ मन का, अर्ज सुनो दाता, स्वामी अर्ज सुनो दाता ।
सेवक द्वै कर जोड प्रभु के चरणो चित लाता ।।८।। ऊँ जय...