जय सन्मति देवा

जय सन्मति देवा, प्रभु जय सन्मति देवा ।

वर्द्धमान महावीर वीर अति, जय संकट छेवा ॥


सिद्धारथ नृप नन्द दुलारे, त्रिशला के जाये ।

कुण्डलपुर अवतार लिया, प्रभु सुर नर हर्षाये ॥१।।


देव इन्द्र जन्माभिषेक कर, उर प्रमोद भरिया ।

रुप आपका लख नहिं पाये, सहस आंख धरिया ॥२।।


जल में भिन्न कमल ज्यों रहिये, घर में बाल यती ।

राजपाट ऐश्वर्य छाँड सब, ममता मोह हती ॥३।।


बारह वर्ष छद्मावस्था में, आतम ध्यान किया ।

घाति कर्म चकचूर, चूर प्रभु केवल ज्ञान लिया ॥४।।


पावापुर के बीच सरोवर, आकर योग कसे ।

हने अघातिया कर्म शत्रु सब, शिवपुर जाय बसे ॥५।।


भूमंडल के चांदनपुर में, मंदिर मध्य लसे ।

शान्त जिनेश्वर मूर्ति आपकी, दर्शन पाप नसे ॥६।।


करुणासागर करुणा कीजे, आकर शरण गही ।

दीन दयाला जगप्रतिपाला, आनन्द भरण तुही ॥७।।