करते हैं प्रभु की आरती

करते हैं प्रभु की आरती, आतम की ज्योति जलेगी ।

प्रभुवर अनंत की भक्ति, सदा सोख्य भरेगी, सदा सोख्य भरेगी ॥

हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी ।।१।।


हे सिंहसेन के राज दुलारे, जयश्यामा के प्यारे ।

साकेतपूरी के तुम नाथ, गुणाकार तुम न्यारे ॥

तेरी भक्ति से हर प्राणी में, शक्ति जगेगी, प्राणी में शक्ति जगेगी।।

हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी ।।२।।


वदि ज्येष्ठ द्वादशी में प्रभुवर, दीक्षा को धारा था ।

चैत्री मावस में ज्ञान कल्याणक उत्सव प्यारा था ॥

प्रभु की दिव्यध्वनि दिव्यज्ञान, आलोक भरेगी, ज्ञान आलोक भरेगी॥

हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तरयामी ।।३।।